पुस्तक परिचय - मध्ययुगीन भारत में सूफ़ीमत और सामाजिक परिवर्तन


रज़ीउद्दीन अक़ील 

प्रस्तुत है मेरे द्वारा अंग्रेज़ी में सम्पादित पुस्तक, सूफ़िज़्म एंड सोसाइटी इन मेडिएवल इंडिया (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस), पर एक छोटी सी टिप्पणी. यह सर्वविदित है कि सूफ़ियों के कई सिलसिलों ने प्रेम और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाकर बहुलवादी समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है. इतिहासकारों के बीच यह मुद्दा भी अहमियत का हामिल है कि मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम अनुयायिओं को एक दूसरे के क़रीब लाने की प्रक्रिया में किस तरह सूफ़ियों ने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. क्या इस प्रक्रिया को इस्लामीकरण और धर्मान्तरण जैसे अहम सवाल के रूप में देखा जा सकता है? यह सवाल आज के सन्दर्भ में सामाजिक बदलाव और राजनीतिक बवाल को समझने में मदद कर सकता है. इसी से जुड़ा प्रश्न है कतिपय संदर्भों में सूफ़ियों का राजनीतिक हस्तक्षेप. क्या मध्यकालीन सूफ़ी संत राजनीतिक प्रक्रिया के हिस्सा थे? और क्या सूफ़ियों की धर्म की राजनीति की समझ उनके समकालीन अन्य धर्मगुरुओं से अलग और बेहतर थी? इन मुद्दों पर इतिहासकारों के बीच होनेवाली बहस को समझने के लिए इस पुस्तक में शामिल लेख इसलिए भी मूल्यवान हैं कि यह लेख कई प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा लिखे गए हैं.

अज़ीज़ अहमद, मुज़फ़्फ़र आलम, रिचर्ड ईटन, योहानन फ़्रीडमैन, कार्ल अर्न्स्ट, साइमन डिग्बी, एसएए रिज़वी, जेएमएस बालजन और ख़लीक़ अहमद निज़ामी सरीख़े इतिहासकारों द्वारा रचित निबंध मध्यकालीन समाज और राजनीति में सूफ़ियों की मौजूदगी को समझने में सहायक होंगे. इनके अतिरिक्त इस किताब के लिए लिखा गया मेरा इंट्रोडक्शन भी बहस से जुड़े सभी बड़े मुद्दों पर रौशनी डालता है.


यह किताब ओयूपी की डिबेट्स इन इंडियन हिस्टरी एंड सोसाइटी सिरीज़, जिसके जेनेरल एडिटर्स सब्यासाची भट्टाचार्य, बीडी चट्टोपाध्याय और रिचर्ड ईटन हैं, के तहत छपी है.

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