पुस्तक परिचय - अल्लाह के नाम पर: इस्लाम और भारतीय इतिहास को समझने की एक कोशिश


रज़ीउद्दीन अक़ील 

पेंगुइन रैंडम हाउस ने मेरी किताब, इन दा नेम ऑफ़ अल्लाह: अंडरस्टैंडिंग इस्लाम एंड इंडियन हिस्टरी, का नया पेपरबैक संस्करण एक नए कवर और शीर्षक से प्रकाशित किया है. यह किताब अब वक़्त की मुनासेबत से, दा मुस्लिम क्वेश्चन, के नाम से छापी गयी है. कुछ दोस्तों ने मज़ाकन यह फ़िक़रा कसा था कि मेरी इस किताब पर कोई फ़तवा क्यों नहीं आया. उस वक़्त मैं कहता था कि चूंकि यह किताब अंग्रेज़ी में है इसलिए इसे किसी ने पढ़ा ही नहीं है, फ़तवा कौन मंगवाएगा!

ख़ैर, इतिहासकार के लिए ज़रूरी है कि जिस विषय पर वह लिखें उनसे जुड़े सभी मसलों और सवालों को इस तरह समझने और बताने का प्रयास करें कि तमाम दस्तावेज़ों और स्रोतों से निकल कर आने वाले ऐतिहासिक तथ्यों की रौशनी में एक नया नैरेटिव तैयार हुआ है, जो वक़्त का तक़ाज़ा है, और किसी भी तरह के भेदभाव और पक्षपात से आज़ाद और पढ़ने में मज़ेदार. मानो इतिहास को साहित्य की तरह पढ़ रहे हों और उन दोनों में अन्तर्निहित राजनीति सहित तमाम आयामों की बारीकियों को समझने की बौद्धिक लालसा की तृप्ति की ओर बढ़ रहे हों.

मेरी इस किताब को देखिए. इस्लाम के भारत में आगमन और मुस्लिम समाज के विभिन्न फ़िरक़ों, मसलकों और जातीय समुदायों के अभ्युदय और गठन के साथ-साथ दूसरे धार्मिक और क्षेत्रीय समुदायों से संबंधों में शिनाख़्त की राजनीति और सत्ता में भागीदारी के संघर्ष के इतिहास को मैंने आठ अध्यायों में समझने का प्रयास किया है. इस तरह मध्यकालीन भारतीय राजनीतिक संदर्भ में इस्लाम के बहुआयामी सामाजिक और रंगारंग सांस्कृतिक इतिहास की रुपरेखा के निर्माण में यह पुस्तक मदद कर सकती है.

मैंने सूफ़ियों, उलमा और दूसरे धर्मों के संतों और गुरुओं के बीच के अन्तर्सम्बन्ध को सुल्तानों और बादशाहों के रवैये से जोड़ कर देखने के अतिरिक्त, ज़ियाउद्दीन बरनी जैसे इतिहासकार और राजनीतिक सलाहकार, अब्दुल क़ादिर बदायुनी जैसे कर्मठ आलिम, शेख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी जैसे हदीस के जाने-माने विशेषज्ञ और जाफ़र ज़टल्ली जैसे ऱेखता के बेबाक शायर के जीवन और लेखन के हवाले से मध्यकालीन भारत में मज़हब की राजनीति और राजनीतिक दावपेंच को समझने की कोशिश किया है. इसके अलावा मैंने इस्लाम और मुसलमानों के भीतर के झगड़ों, विशेषकर बौद्धिक चिंतन और अंधी धार्मिकता के बीच की निरंतर जारी रस्साकशी, के विभिन्न पहलुओं का उनके विभिन्न परिप्रेक्ष में विश्लेषण किया है. 


मेरी यह किताब हिंदुस्तान में इस्लाम और मुसलमानों के मध्यकालीन दौर के अहम मसलों की ऐतिहासिक समझ को और आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगी.

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